सत्ता के गलियारे

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Monday, May 11, 2009

भारत भाग्य विधाता

प्रिय मित्रो,
कुछ ही दिनों में भारत के नए प्रधान मंत्री को चुना जाएगा परन्तु दुख की बात यह है की भारत के भाग्य विधाता को चुनने का हक़ भारत की आम जनता को नहीं है। राजनीतिक पार्टियाँ कुछ जोड़ तोड़ लगाएंगी और किसी को भी भारत का प्रधान मंत्री बना दिया जाएगा। कुछ नेता तो प्रधान मंत्री बननेके नाम पे ही वोट मांग रहे हैं। चलिए देखते हैं की इस बार कौन कौन प्रधान मंत्री की गद्दी हासिल करने की ताक में है।
१) लाल कृषण अडवाणी : इनके दोनों पाँव कब्र में हैं परन्तु प्रधान मंत्री बनने की लालसा अभी भी नहीं गई। क्या करें भाई कुर्सी का नशा ही ऐसा होता है की हर कोई इसे पाना चाहता है और अडवाणी जी ने तो कई बरस इंतज़ार किया है। पहले मौका लगा था तो वाजपेयी जी बीच में आ गए थे और अब लोग नरेंदर मोदी का नाम लेने लग गए हैं।
२) मनमोहन सिंह : आयु में ये अडवाणी जी से ज़्यादा पीछे नहीं हैं परन्तु लगता है कुर्सी का नशा इन्हे भी हो गया है। माना पिछली बार कांग्रेस ने इन्हे विकल्पों के अभाव में चुना परन्तु इस बार तो ये अपनी आयु का लिहाज कर रुक सकते थे।
३) शरद पवार : युपिऐ के बिखरते ही इनका नाम भी प्रधान मंत्री पद के लिए चमकने लगा। कुछ दलों ने तो बिना चुनावों के ही निश्चय कर लिया की शरद जी को ही अगला प्रधान मंत्री बनायेंगे। वैसे देखे तो शरद जी एक अच्छे व्यापारी हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद इन्होने क्रिकेट टीम बेचीं, खिलाड़ी बेचे और जो खिलाड़ी इनके पास बिकने के लिए नहीं आए उन पर इन्होने प्रतिबन्ध लगा दिया। कहीं प्रधान मंत्री बनने के बाद ये भारत की भोली जनता का विश्वास भी ऐसे ही ना बेच दें।
४) श्रीमती मायावती : ये तो चुनावों से पहले ही तीसरे मोर्चे से मांग कर रही हैं की इन्हे प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। इनसे ज़्यादा प्रधान मंत्री पद की लालसा तो किसी में भी नहीं दिखाई दी। इन्होने ख़ुद को मनमोहन सिंह जी के बराबर माना। अरे इन्हे कोई समझाए की प्रधान मंत्रालय में सिर्फ़ अमेडकर पार्क बनवाने का काम नहीं होता और इन्होने तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्रालय में रह कर इसके इलावा कोई और काम ही नहीं किया।
५) प्रकाश कारत : यूपीए छोड़ने के बाद तो इन्होने भी प्रधान मंत्री बनने के सपने देखे परन्तु अगर ये प्रधान मंत्री बने तो इन्हे समझाना पड़ेगा की ये भारत के प्रधान मंत्री हैं क्यूंकि इनहे तो हमेशा भारत के फायदे से पहले चीन का फायदा देखना होता है।
इनके इलावा भी कुछ प्रत्याशी हैं जो प्रधान मंत्री पद पे निगाहें लगाये बेठे हैं जैसे की लालू जी , पासवान जी, मुलायम जी। परन्तु दुख केवल इसी बात का है की सही या ग़लत ना तो हम अपना प्रधान मंत्री चुन सकते हैं और ना ही राष्ट्रपति । विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र की विडंबना देखिये की उसकी प्रजा को अपने सबसे बड़े नेता चुनने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक पार्टियों को जिस व्यक्ति में अपना सबसे अधिक फायदा नज़र आता है उसे ही प्रधान मंत्री बना दिया जाता है फिर चाहे उसे कोई पसंद करे या ना करे।
मित्रो इस लेख में व्यक्त किए गए विचार मेरे अपने हैं तथा पूरी तरह से ये बड़े बड़े नेताओं के बड़े बड़े भाषणों से प्रभावित हैं।
आपका आभारी,
उत्तम गर्ग

1 comment:

  1. अच्छा विश्लेषण , सुंदर अभिव्यक्ति
    आप अच्छा लिखते हैं ,आपको पढ़कर खुशी हुई
    साथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है ,

    यूँ ही लिखते रही हमें भी उर्जा मिलेगी ,

    धन्यवाद
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

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