सत्ता के गलियारे

सत्ता के गलियारे

Tuesday, July 14, 2009

मायावती की माया

प्रिये मित्रो,
आज बहुत दिनों के उपरांत मेरा मन दोबारा लिखने को किया। दरअसल आजकल में भी अमरीका की बिगड़ती अर्थव्यवस्था का शिकार हो गया हूँ और बहुत समय से नई नौकरी की तलाश में हूँ जिस कारण कुछ लिखने का समय नहीं मिला। अपनी नौकरी खोने के बाद ही मुझे उन लाखों लोगों के दुःख का एहसास हुआ जो इस बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था में अपनी नौकरी खो चुके हैं। आज मैं सोच रहा था की भारत में भी सरकार अनेक प्रयास कर रही है अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए लेकिन भारत से एक नेता हैं जिनके प्रयास को देख कर में दंग रह गया। और ये नेता हैं मायावती बहन जी।
मनमोहन जी, ओबामा साहिब, सरकोजी ये सब बड़े बड़े नेता को तो कुछ समझ नहीं हैं जो ये अपने देशों में अर्थ व्यवस्था मज़बूत करने के लिए मूलभूत सुविधाओं और व्यवस्थाओं को सुधारने की बात करते हैं। बताइए सड़क और पुल बनाने से क्या फायदा होगा। कुछ निजी कंपनियाँ कुछ दिन के लिए लोगों को काम देंगी और उसके बाद फिर छुट्टी और वैसे भी सड़कें अच्छी होंगी तो लोगों की गाडियाँ कम ख़राब होंगी तो मतलब मकेनिक लोगों के लिए काम कम हो जाएगा तो ऐसे में अर्थव्यवस्था कैसे मज़बूत बनी जाए। ये हमने सिखा मायावती जी से।
मायावती जी को उत्तर प्रदेश की गरीब जनता नहीं दिखा देती परन्तु उन्हें कांशी राम का सपना अभी भी याद था की उन्हें अपना, बाबा आंबेडकर और मायावती जी की प्रतिमा साथ साथ चाहिए थी। अब देखिये मायावती जी के प्रतिमा बनाओ प्रोजेक्ट से कितने लोगों को काम मिला। पहले मूर्तिकारों को जिन्होंने ये प्रतिमाएँ बनाइ और अब इनका रख रखाव भी करेंगे। फिर माली जो इन प्रतिमयों के चारों और बाग़ बनायेंगे। और अब सबसे रोचक बात इन प्रतिमाओं से सबसे ज़्यादा फायदा होगा बैग बनाने वालों का क्योंकि मायावती जी की प्रत्येक प्रतिमा के हाथ में बैग पकड़ा हुआ है तो उस बैग को देखकर औरतें बैग खरीदने शुरू करेंगी तो बैग बनाने वाले से लेकर बैग बेचने वाले तक सबका फायदा होगा मतलब पूरा चमड़ा उद्योग तरक्की करेगा तथा इस उद्योग में नई नौकरियां आएँगी।
मायावती जी ने तो ये भी कहा है की ६ महीने के बाद इन प्रतिमाओं को देखने के लिए टिकेट भी लगाया जाएगा यानी की और नई नौकरियां । हर विभाग में हर पदवी पर लोगों की ज़रूरत पड़ेगी।
परन्तु मेरी सोच एक जगह आकर रुक जाती है। जिस देश की २७% जनता आज भी दिन में ५० रुपये कमाकर अपना पेट नहीं भर पाती ऐसे देश में कितने लोग होंगे जो इन प्रतिमाओं को देखने आयेंगे । और बाकी रहे विदेशी यात्री तो मेरे ख्याल से मायावती जी और कांशी राम जी ने अभी तक इतना कोई महान काम नहीं किया की विदेशी इनकी प्रतिमाएँ देखने आयेंगे हाँ जहाँ तक बाबा आंबेडकर की बात है तो हर वोह व्यक्ति जो बाबासाहेब को जानता है वो यह भी जानता होगा की वो बहुत ही साधारन जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखते थे तथा उन्हें अपनी प्रतिमाएँ बनवाने में कोई रूचि नहीं थी।
माफ़ी चाहूँगा मित्रो अगर मैंने कुछ ज़्यादा और ग़लत लिख दिया हो लेकिन सचाई येही है की जिस देश की जनता रात को भूखे पेट सोती हो उस देश के नेताओं को अपनी प्रतिमाएँ बनवाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।

आपका आभारी,
उत्तम गर्ग

Monday, May 11, 2009

भारत भाग्य विधाता

प्रिय मित्रो,
कुछ ही दिनों में भारत के नए प्रधान मंत्री को चुना जाएगा परन्तु दुख की बात यह है की भारत के भाग्य विधाता को चुनने का हक़ भारत की आम जनता को नहीं है। राजनीतिक पार्टियाँ कुछ जोड़ तोड़ लगाएंगी और किसी को भी भारत का प्रधान मंत्री बना दिया जाएगा। कुछ नेता तो प्रधान मंत्री बननेके नाम पे ही वोट मांग रहे हैं। चलिए देखते हैं की इस बार कौन कौन प्रधान मंत्री की गद्दी हासिल करने की ताक में है।
१) लाल कृषण अडवाणी : इनके दोनों पाँव कब्र में हैं परन्तु प्रधान मंत्री बनने की लालसा अभी भी नहीं गई। क्या करें भाई कुर्सी का नशा ही ऐसा होता है की हर कोई इसे पाना चाहता है और अडवाणी जी ने तो कई बरस इंतज़ार किया है। पहले मौका लगा था तो वाजपेयी जी बीच में आ गए थे और अब लोग नरेंदर मोदी का नाम लेने लग गए हैं।
२) मनमोहन सिंह : आयु में ये अडवाणी जी से ज़्यादा पीछे नहीं हैं परन्तु लगता है कुर्सी का नशा इन्हे भी हो गया है। माना पिछली बार कांग्रेस ने इन्हे विकल्पों के अभाव में चुना परन्तु इस बार तो ये अपनी आयु का लिहाज कर रुक सकते थे।
३) शरद पवार : युपिऐ के बिखरते ही इनका नाम भी प्रधान मंत्री पद के लिए चमकने लगा। कुछ दलों ने तो बिना चुनावों के ही निश्चय कर लिया की शरद जी को ही अगला प्रधान मंत्री बनायेंगे। वैसे देखे तो शरद जी एक अच्छे व्यापारी हैं। बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद इन्होने क्रिकेट टीम बेचीं, खिलाड़ी बेचे और जो खिलाड़ी इनके पास बिकने के लिए नहीं आए उन पर इन्होने प्रतिबन्ध लगा दिया। कहीं प्रधान मंत्री बनने के बाद ये भारत की भोली जनता का विश्वास भी ऐसे ही ना बेच दें।
४) श्रीमती मायावती : ये तो चुनावों से पहले ही तीसरे मोर्चे से मांग कर रही हैं की इन्हे प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। इनसे ज़्यादा प्रधान मंत्री पद की लालसा तो किसी में भी नहीं दिखाई दी। इन्होने ख़ुद को मनमोहन सिंह जी के बराबर माना। अरे इन्हे कोई समझाए की प्रधान मंत्रालय में सिर्फ़ अमेडकर पार्क बनवाने का काम नहीं होता और इन्होने तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्रालय में रह कर इसके इलावा कोई और काम ही नहीं किया।
५) प्रकाश कारत : यूपीए छोड़ने के बाद तो इन्होने भी प्रधान मंत्री बनने के सपने देखे परन्तु अगर ये प्रधान मंत्री बने तो इन्हे समझाना पड़ेगा की ये भारत के प्रधान मंत्री हैं क्यूंकि इनहे तो हमेशा भारत के फायदे से पहले चीन का फायदा देखना होता है।
इनके इलावा भी कुछ प्रत्याशी हैं जो प्रधान मंत्री पद पे निगाहें लगाये बेठे हैं जैसे की लालू जी , पासवान जी, मुलायम जी। परन्तु दुख केवल इसी बात का है की सही या ग़लत ना तो हम अपना प्रधान मंत्री चुन सकते हैं और ना ही राष्ट्रपति । विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र की विडंबना देखिये की उसकी प्रजा को अपने सबसे बड़े नेता चुनने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक पार्टियों को जिस व्यक्ति में अपना सबसे अधिक फायदा नज़र आता है उसे ही प्रधान मंत्री बना दिया जाता है फिर चाहे उसे कोई पसंद करे या ना करे।
मित्रो इस लेख में व्यक्त किए गए विचार मेरे अपने हैं तथा पूरी तरह से ये बड़े बड़े नेताओं के बड़े बड़े भाषणों से प्रभावित हैं।
आपका आभारी,
उत्तम गर्ग

Monday, April 27, 2009

खबरों की मुरम्मत

चुनावी मौसम पूरे रंग में है वादों की वर्षा हो रही है प्रतिद्वंदी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं अपनी कार्य कुशलता का तो पता नहीं लेकिन दूसरों की कार्यकुशलता का जायजा लिया जा रहा है तो प्रस्तुत है पिछले कुछ हफ्तों से हमारे देश के गणमान्य लोगों द्वारा दिए गए कुछ ब्यान

सबसे पहले देश की सर्वशक्तिशाली नारी

सोनिया गाँधी: निर्दालिये उम्मीदवारों को वोट देना वोट ख़राब करने के बराबर है
अरे मैडम अगर आप अच्छे उम्मीदवारों को टिकेट देंगी तो वोटर बेचारा निर्दालिये को वोट क्यों देगा अब मिसाल के तोर पे अमृतसर से श्री शाम लाल गाँधी एक निर्दालिये उम्मीदवार हैं जो साइकिल पर घर घर जाकर प्रचार करते हैं और उनके प्रतिद्वंदी हेलीकॉप्टर में उड़कर प्रचार करते हैं तो बताइए देश का सच्चा हितेषी कौन हुआ लेकिन बेचारे गाँधीवादी विचारों वाले शामलाल जी जो सादगी का प्रचार कर रहे हैं उन्हें तो गाँधी जी को और उनकी विचारधारा को अपनी सम्पति समझाने वाली कांग्रेस ने अपनाया भी नहीं और ऊपर से मैडम सोनिया ने ये भी बोल दिया की ऐसे उम्मीदवार को वोट भी मत दीजिये शायद सोनिया जी ये कहना चाहती हैं की जिस उम्मीदवार को उन्होंने चुना है वोही जनता का भला कर सकता है और भारत के साधारण नागरिक अपने लिए किसी को चुन ही नहीं सकते














अमृतसर से निर्दलिये उम्मीदवार शामलाल गाँधी प्रचार करते हुए

मायावती : प्रधान मंत्री दलित की बेटी को बनना चाहिए
केवल दलित की बेटी ही क्यों बेटा क्यों नहीं मायावती जी आप सीधे सीधे क्यों नहीं कहती की अब आपको प्रधान मंत्री बनना है वैसे ये भी बता दीजिये की आप प्रधान मंत्री बनने के बाद अपने जनम दिवस पे कितना खर्चा करने वाली हैं

नरेन्द्र मोदी : अडवाणी २०१४ में भी प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार
मोदी साहिब पहले अडवाणी जी की आयु तो देखिये क्या वो तब तक अपनी टांगों पे खड़े हो पाएंगे

करूणानिधि : जब तक श्री लंका सरकार लिट्टे के विरुद्ध करवाई नहीं रोक देती तब तक भूख हरताल
जनाब कभी आपने अपने राज्य के लोगों के लिए इतनी गंभीरता से सोचा है आपके अपने राज्य में किसान आतम हत्या करने पे मजबूर हैं पहले आप उन्हें तो बचाइए

प्रियंका गाँधी : नेहरू गाँधी परिवार के लिए राजनीति देश सेवा है ना की व्यापार
प्रियंका जी देश सेवा गरम सड़कों पे चल कर होती है वातानाकूलित गाड़ियों में घूम कर नहीं और देश सेवा तो इमर्जेंसी और बोफोर्स घोटाले से ही सिद्ध हो जाती है ज़रा राहुल बाबा से बोलिए की एक दिन की जगह एक साल के लिए दिल्ली की यमुना नदी के पास की झुग्गी में रहे तो पता चलेगा वहां के लोगों की तकलीफ ये वोही यमुना नदी है जिसे आपकी कांग्रेस पार्टी ना जाने कितने सालों से साफ़ करवा रही है

मित्रो मुझे माफ़ कीजियेगा अगर में कुछ ज्यादा बोल गया हूँ परन्तु सचाई यही है की देश सेवा का ढोंग ये नेता लोग
सिर्फ़ वोट मिलने तक करते हैं उसके बाद तो यह दिखाई भी नहीं देते

आपका आभारी,
उत्तम गर्ग