सत्ता के गलियारे

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Friday, April 24, 2009

भारतीय प्रजातंत्र में राजनीति का पतन


पिछले कुछ समय से मेरे एक मित्र पल्लव बुधकर हिन्दी भाषा के माध्यम से अपने विचार व्यक्त कर रहे थे तो मुझे भी उनसे प्रेरणा मिली और मैंने भी सोचा की इस बार में भी अपनी राष्ट्रीय भाषा में लिखूं।
आजकल भारत में चुनावों का माहौल है। चरों और नेता एक एक वोट के लिए अपने वायदे बेच रहें हैं। मजे की बात यह है की ६० वर्ष हो गए आजादी को, नेता बदल गए, लोग बदल गए, राज्य बदल गए पर वायदे नहीं बदले। मिसाल के तोर पे अय्धोया मसला -- हर बार भाजपा का वोही वायदा की इस बार हम यह मुद्दा सुलझा देंगे। कांग्रेस का वायदा पिछले ६० वर्षों से हर घर में बिजली पानी होगा। समाजवादी पार्टी का वायदा देश में अल्पसंख्यकों का विकास करेंगे। बसपा का वायदा अनसुचित जातियों का विकास करेंगे और पता नहीं क्या क्या। परन्तु भारत का आम नागरिक क्या करे ? क्योंकि उसे तो आगे बढ़ने नहीं दिया जाएगा और नेताओं के परिवार पीछे नहीं हटेंगे।
मसलन आजकल अर्जुन सिंह कांग्रेस से थोड़े खफा हैं क्यूंकि कांग्रेस ने उनके पुत्र एवं पुत्री को चुनाव लड़ने का टिकेट ना देकर उनकी वफादारी का अपमान किया है। पर जनाब देश चलाने के लिए पिता की वफादारी कम और ख़ुद की अक्ल की शायद ज़्यादा ज़रूरत होती है। वैसे मुझे पक्का यकीन है की अर्जुन सिंह जी ने अपने पुत्र एवं पुत्री दोनों को अपने वर्षों पुराने वायदे अच्छे से याद करवा दिए होगे क्योंकि इन्ही वादों से अर्जुन सिंह हमेशा चुनाव जीते हैं और इन्ही से आगे उनके बच्चे जीतेंगे।
मैंने इस बार मन बनाया की कांग्रेस को वोट दूँगा क्योंकि मुझे राहुल गाँधी और मनमोहन सिंह पर थोड़ा ज़्यादा भरोसा था जबकि मेरे मित्र रघु श्रीधर का विचार है की किसी भी हालत में कांग्रेस को वोट नहीं देना है। वो राहुल गाँधी के गरीबी हटाने के वायदे से खफा हैं। उनका कहना है की पिछले ६० वर्षों में कांग्रेस गरीबी नहीं हटा पाई तो अगले ५ वर्षों में वे किस जादू की छड़ी का प्रयोग करेंगे ताकि हिंदुस्तान से गरीबी हट जाए।मैं भाजपा समर्थक हूँ लेकिन भाजपा को वोट देना नहीं चाहता हूँ क्योंकि मुझे लगता है की हमें अगला नेता कम से कम १०-१५ वर्ष के लिए चाहिए और अडवाणी जी तो ख़ुद ८१ वर्षों के हो गए हैं। इस असमंजस के चलते मैंने मन बनाया कांग्रेस को वोट देने का क्योंकि चाहे कुछ भी हो एक तो मनमोहन सिंह साफ़ सुथरी छवि वाले अच्छे और सुलझे हुए इंसान हैं और वो उमर में अडवाणी जी से थोड़े छोटे हैं परन्तु आज उन्होंने भी एक वायदा कर दिया। सत्ता में आने पर १०० दिन में अर्थव्यवस्था को ठीक करने का। जनाब भूलिए मत अभी भी आपके पास सत्ता के ३० दिन बाकी हैं और अर्थव्यवस्था तो पिछले एक वर्ष से बिगड़ी हुई है। जो आप ३६५ दिन में नहीं सुधार पाए उसे चुनावों के बाद १०० दिन में कैसे सुधार देंगे? तो अंत मैं यही कहूँगा की हमारे भारतवर्ष मैं नेता शायद हर काम केवल अगले चुनावों को मन में रख कर करते हैं और देश को सुधारने का शायद उनका कोई ख्याल नहीं होता।
अब आप ही बताइए किसे वोट दूँ?

आपका आभारी,
उत्तम गर्ग